शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

हँसते हुए माँ भारती के गोद में सो जायेंगे

अकेले हैं तो क्या अकेले ही तलवार उठाएंगे
यूँ घुटते हुए जीने का गम तो नहीं रहेगा
मेरा सौभाग्य तो तब होगा जब
हँसते हुए माँ भारती के गोद में सो जायेंगे
फायदा क्या है बर्बाद हो कर मरने का
बात तो तब बनेगी जब
माँ के दुश्मनों को बर्बाद कर जायेंगे
सहेंगे न सितम किसी भी जुल्मी का
हम तो जुल्मी पे कहर बरसायेंगे
गम नहीं होगा हमें तब भी
जब अकेले ही टकराकर मिट जायेंगे
गम तो नहीं रहेगा के हम माँ के काम नहीं आये
इसलिए हे माँ तेरे चरणों में
हम अपने प्राणों की बलि चधायेंगे,
हँसते हुए माँ भारती के गोद में सो जायेंगे

सोमवार, 11 फ़रवरी 2008

जीवन की नाव चलती जाती है

जीवन की नाव चलती जाती है
पतझर में सावन में रेत में सागर में

जीवन की नाव चलती जाती है
सोचते हैं लोग अभी उम्र ही क्या हमारी
मगर उम्र चुपके से ढलती जाती है
रूकती नहीं तूफानों में भी
ठोकर खाकर चट्टानों से भी
बढ़ती है बस बढ़ती जाती है

जीवन की नाव चलती जाती है
दास्ताँ अजीब है इस जीवन की भी
गम हो तो भी मुस्काती है
रोती नहीं कभी भी खुद पे ये
और न ही जीने वालो को रुलाती है
जो जीवन को समझ नहीं पाते
आंसू तो बस उनके हिस्से आती है,
जीते तो सब हैं मगर
जीवन के साथ सब नहीं जी पाते हैं
जिन्दगी गुलाम हो जाती है उसकी
जो जीवन को ख़ुशी से गले लगाते हैं,
इन्सान समझ जों ले इसे तो अच्छा है
ये बेफिक्र होकर बढ़ती जाती है
जीवन की नाव चलती जाती है

बुधवार, 9 जनवरी 2008

जाग ओ भारत के बेटे माँ भारती पुकार रही

जाग ओ भारत के बेटे माँ भारती पुकार रही
अधर्मियो के वार से माँ अब चीत्कार रही
जाग ओ भारत के बेटे माँ भारती पुकार रही

विधर्मियों के लिए ही आज यहाँ का न्याय है
धर्म की बात करना पाप है अन्याय है
असभ्यो के हाथो में सभ्यता की बागडोर है
हो सभ्यता की रक्षा कैसे ये पुकार चहुँ ओर है
संस्कृति अब खो रही भाषा अब खो रहा
ये सब देखकर भी तू, बोल कैसे सो रहा
माँ की आत्मा रक्षा हेतु अब कुलाचे मार रही
जाग ओ भारत के बेटे माँ भारती पुकार रही

कबतक लिपटे रहोगे अन्ध्बुधि के मोह में
भारत को मिटा दे अब, सब हैं इसी टोह में
राष्ट्र हित हेतु तू क्यों कुछ बोलता नहीं
राष्ट्रहित ही धर्म है होता ये राज क्यों खोलता नहीं
धर्म से भारी पंथ हो रहा जुल्म से अन्याय से
सत्य वंचित हो रहा सत्य से और न्याय से
निष्ठा को आत्मा से क्षीण है जमीं में गार रही
जाग ओ भारत के बेटे माँ भारती पुकार रही

कैसा पत्थर है तू, क्यों माँ के आशीष से वंचित हो रहा
घर में तेरे बैठे हैं लुटेरे, क्यों तू इसतरह सो रहा
क्या तुझमे पुरुष नहीं क्या तुझमे जवानी नहीं
डरकर मरने से टकराकर मिटना होता है बेहतर
क्या तुमने सुनी ये अमर कहानी नहीं
उठ अगर तेरे अन्दर अभिमान बाकि है
छोर दे कायरता को गर स्वाभिमान बाकि है
उठ और दृष्टि खोल के देख दुश्मन तुम्हे ललकार रही
जाग ओ भारत के बेटे माँ भारती पुकार रही

दलाल लगे कविता करने, कविराज गए जंगल चरने

दलाल लगे कविता करने, कविराज गए जंगल चरने
तिरकम के लाखो गेट यहा, मालिस का उचा रेत यहाँ
नेता से मुश्किल भेट यहाँ, मंत्री का भरी पेट यहाँ
बन गए मूर्ख विद्वान यहाँ, गंजे बन गए महान यहाँ

सब नर स्वतंत्र नारी स्वतंत्र, कपरे की सब धारी स्वतंत्र
मोटर स्वतंत्र गारी स्वतंत्र, कपरे की सब धारी स्वतंत्र
पिछला जो कुछ था झूठा है, अगला ही सिर्फ अनूठा है
अनु फ़ैल फ़ैल कर फूटा है, दस्तखत की जगह अंगूठा है

अभिनेत्री बनती हैं सीता जी, अखवार बने हैं गीता जी
गिदर कुर्सी पा जाते हैं, चम्गादर मौज उराते हैं
बगुले पते हैं वोट यहाँ, कौवे गिनते हैं नोट यहाँ
बन्दर ही जग का राजा है, भोपू ही बढ़िया बाजा है

इश्क की गहराई में मै कुछ इस कदर खो गया

इश्क की गहराई में मै कुछ इस कदर खो गया
पाने को महफ़िल चले थे और तन्हा हो गया
पहले तो जिन्दगी हमारी हर मोर पर मुस्कुराती रही
महबूब की बाते सुन सुन के हँसती रही गाती रही
उनकी आँखों में डूब के सदिया बीतती जाती रही
उनके धरकनो की जुवा ही हमें समझ में आती रही
जबसे दूर हुए वो हमसे अश्को का समंदर हमें डुबो गया
हसरतें बची न कुछ भी और आरजू भी खो गया
पाने को महफ़िल चले थे और तन्हा हो गया

रौशनी की बात छोरो अंधेरो में भी दिल जलने लगा
काबू रहा न खुद पे कोई साँस भी रुक रुक कर चलने लगा
दिल में जबसे वो याद बन कर छाने लगी
तन्हाई हुयी संगदिल इतनी की हमें महफ़िल से डराने लगी
चांदनी रात में भी चाँद मेरा सो गया लगी
एक आग दिल में और जिन्दगी खाक हो गया
पाने को महफ़िल चले थे और तन्हा हो गया................

जिंदा है मगर कहाँ जिन्दगी है तेरे बगैर

जिंदा है मगर कहाँ जिन्दगी है तेरे बगैर
क्या बताएं खुदा से क्या बंदगी हैं तेरे बगैर
जिंदा है मगर कहाँ जिन्दगी है तेरे बगैर

एक तेरे वादे के खातिर ही हम जहाँ में हैं
वरना दुनिया में होना भी शर्मिंदगी है तेरे बगैर,
कहा था तुमने साथ चलेंगे हर पथरीली राहों पर
दर्द एक सा होगा हमे एक दूजे की आहो पर
हमारा तो बस आसरा होगा एक दूजे की पनाहों पर
चढेगे तो साथ चढेगे हम दुनिया के निगाहों पर
देखो आज घेर रहा ज़माने की दरिंदगी है तेरे बगैर
जिंदा है मगर कहाँ जिन्दगी है तेरे बगैर

मौत के इंतजार में बस जीने का हौसला चाहिए

क्या कहे हमें जिन्दगी से क्या चाहिए
मौत के इंतजार में बस जीने का हौसला चाहिए
न चाहिए रौशनी न ख़ुशी न रंग न किसी का संग
और न ही चमन से बहारों का सिलसिला चाहिए
मौत के इंतजार में बस जीने का हौसला चाहिए
अंधेरो में जीने की आदत है रौशनी का क्या करू
गम में पीने की आदत है ख़ुशी का क्या करू
ऐसे बेरंग जीवन को रंगो की क्या जरूरत है
खामोश लव ही ठीक है होठो की हसी का क्या करू
हमें अब बस वक़्त से मुकद्दर का फैसला चाहिए
मौत के इंतजार में बस जीने का हौसला चाहिए...........

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

मगर मंजिल है कहाँ पता नहीं

दिनरात चल रहा हूँ मगर मंजिल है कहाँ पता नहीं
तुफा में घिरे मेरे जीवन का साहिल है कहाँ पता नहीं
खरे होकर चौराहे पर निहार रहा हूँ दूर तक
कौन सा राह जायेगा मंजिल तक हमें पता नहीं
वक़्त ने ऐसे मोर पे लाकर खरा किया है हमको
की कदम बढ़ रहे हैं हर वक़्त मगर किधर पता नहीं
मन में हौसला है और विश्वाश भी की पहुचेंगे एक दिन
मंजिल है कितनी दूर और पहुचेंगे कब तक पता नहीं ........

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..

मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार म्रत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है..
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गती आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

फूलों से जग आसान नहीं होता है..

रुकने से पग गतीवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाशाण करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

मंगलवार, 13 नवंबर 2007

धर्मान्तरण किया या कराया गया ?

सैंकड़ों दलितों ने धर्मांतरण किया
भारतीय संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले दलित नेता भीमराव अंबेडकर के बौद्ध धर्म अपनाने के 50 साल पूरे होने के मौके पर नागपुर में धर्मांतरण समारोह आयोजित किया गया.
आयोजकों का कहना है कि वे भारत के अन्य शहरों में भी इस तरह के धर्मांतरण समारोहों का आयोजन करेंगे.

धर्मांतरण
ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल के एल्बर्ट लायल ने बीबीसी को बताया कि रैली में छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से हज़ारों लोग पहुँचे. अखिल भारतीय अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों के परिसंघ के नेता उदित राज ने दावा किया कि धर्मांतरण सभा में दो से ढ़ाई हज़ार लोगों ने ईसाई और बौद्ध धर्म को अपना लिया. उन्होंने कहा, "हमनें गुजरात की मोदी सरकार को इसके ज़रिए बताने की कोशिश की है कि ईसाई और बौद्ध धर्म हिंदू धर्म से बेहतर हैं."
इसका आयोजन ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल
और अखिल भारतीय अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों के परिसंघ ने संयुक्त रूप से किया था.
एल्बर्ट लायल ने बताया कि नागपुर की रैली में 500 से अधिक लोगों ने ईसाई धर्म को और एक हज़ार से अधिक लोगों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया.
धर्मांतरण समारोह शुरू होने से पहले ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल के अध्यक्ष जोसेफ़ डिसूजा ने डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता का रास्ता दिखाया था.
इस समारोह में अमरीका और ब्रिटेन के 30 से अधिक प्रतिनिधिमंडल ने शिरकत की.
सौजन्य बी बी सी :

धर्मान्तरण के कुछ पहलू :
१ रैली का आयोजक ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल था
२ जबकि दलित भीमराव अम्बेडकर के बौद्ध बनने का ५०वां साल मना रहा था
३ अगर दलित अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करते हैं तो उन्हें बौद्ध धर्म अपनानी चाहिए थी

आखीर ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल का ये रैली किस बात को साबित करता है, क्या ये यह साबित नहीं करता की ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल एक पूरी साजिस के तहत ये धर्मान्तरण का कार्य करवा रही है? हर रोज कोई न कोई मारपीट या बहलाफुसला कर या फिर लालच दे कर धर्मान्तरण की खबरें आती रहती है उदाहरण के तौर पर : ( ईसाई धर्म नहीं अपनाने पर दलित दंपत्ति को पीटा
जालौन। उत्तरप्रदेश के जालौन जिले में ईसाई धर्म अपनाने से मना करने पर पादरी ने एक दलित दंपत्ति की बेहरमी से पिटाई की। जिले के उरई शहर के मोहल्ला शांतिनगर के निवासी देवेंद्र अहिरवार एवं उसकी पत्नी सुनीता ने बुधवार को कोतवाली पुलिस को दिए प्रार्थना पत्र में आरोप लगाया कि नौकरी का लालच दिए जाने पर उन्होंने मिजपा क्रिश्चियन स्कूल जाकर प्रार्थना सभा में भाग लेना शुरू किया था। छह माह बीत जाने के बाद भी जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो इस संबंध में उन्होंने पादरी डेनियल से शिकायत की जिस पर पादरी ने कहा कि हिंदू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाने पर ही नौकरी मिलेगी। आरोप पत्र में कहा गया है कि दलित दंपत्ति ने धर्म परिवर्तन करने से मना करते हुए प्रार्थना सभा में भाग लेना बंद कर दिया। इससे गुस्साए पादरी डेनियल एवं धर्म प्रचारक रोशन ने आज दलित दंपत्ति के घर जाकर गाली-गलौज की और पति-पत्नी की जमकर पिटाई कर दी। कोतवाली पुलिस ने पिटायी के दौरान घायल हुई महिला को उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया है। खबर लिखे जाने तक मामले की प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। इस बीच, पीड़ित महिला के परिजनों ने पुलिस एवं प्रशासन से इस घटना के लिए दोषी पादरी एवं धर्म प्रचारक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराए जाने के साथ उनकी जानमाल की सुरक्षा किए जाने की गुहार की है।)
आखिर ये सब क्या है ? फिर भी हमारा हिन्दू समाज सेकुलर होने का डंका पिट रहा है हमारा समाज बिलकुल अँधा हो गया है इसे कुछ नहीं दिखता दिखाने की कोशिश करो तो भी नहीं देखना चाहते अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू हिन्दुस्तान में ही अल्पसंख्यक हो जायेंगे और बिधर्मियो की साजिस सफल हो जायेगी.